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अनसुना पाँचवाँ वेद? सूक्ष्मवेद – इसे नष्ट क्यों कर दिया काल भगवान ने

अनसुना पाँचवाँ वेद? सूक्ष्मवेद – वेद भारतीय संस्कृति और धर्म का अभिन्न हिस्सा हैं। वेद चार मुख्य भागों में विभाजित हैं: ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, और अथर्ववेद। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि एक पांचवा वेद भी था? इस लेख में हम पांचवे वेद की उत्पत्ति, उसकी विशेषताएं और क्यों काल भगवान ने उसे नष्ट कर दिया, इस पर चर्चा करेंगे।

पांचवा वेद: क्या है और इसकी उत्पत्ति कैसे हुई? – सूक्ष्मवेद

पांचवा वेद को ‘कबीर वाणी’ के नाम से भी जाना जाता है। इसे परमेश्वर ने अपने मुख कमल से बोला था। कहा जाता है कि हर युग में परमात्मा सतलोक से आकर इस पांचवे वेद का ज्ञान देते थे। इस वेद को लिपिबद्ध किया जाता था और इसे ‘सच्चिदानंदधन ब्रह्म की वाणी’ कहा जाता था।

पांचवे वेद का महत्व

यह वेद सच्चिदानंदधन ब्रह्म की वाणी है और इसका ज्ञान गीता में भी विस्तार से बताया गया है। गीता के चौथे अध्याय के 32वें श्लोक में बताया गया है कि यह वेद परमात्मा के मुख कमल से निकला तत्वज्ञान है।

काल भगवान ने पांचवे वेद को क्यों नष्ट किया?

पांचवे वेद में परमात्मा की सच्ची विधि और उनकी पूजा का तरीका लिखा था। लेकिन काल भगवान, जो कि जगत के संचालन का काम करते हैं, ने इस वेद को नष्ट कर दिया।

कारण

काल भगवान ने इस वेद को नष्ट इसलिए किया क्योंकि इसमें जो ज्ञान था, वह उनके शासन के खिलाफ था। यह ज्ञान अगर प्राणियों तक पहुँच जाता तो वे परमात्मा की सच्ची भक्ति करने लगते और काल भगवान का शासन कमजोर हो जाता।

नतीजा

इस ज्ञान के नष्ट होने के कारण, आज भी अधिकतर लोग चार वेदों का ही पालन करते हैं और पांचवे वेद का अस्तित्व केवल कुछ प्राचीन ग्रंथों और संतों की वाणियों में ही सीमित रह गया है।

गीता और पांचवा वेद | सूक्ष्मवेद

गीता के अध्याय 18 के 65वें श्लोक में कहा गया है कि तत्वज्ञान को तत्त्वदर्शी संतों से समझना चाहिए। गीता ज्ञान दाता ने भी बताया है कि सच्चिदानंदधन ब्रह्म की वाणी में ही सच्चा ज्ञान है।

तत्त्वदर्शी संतों का महत्व

तत्त्वदर्शी संतों के पास जाकर इस ज्ञान को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे इस सच्चे तत्वज्ञान को सरल भाषा में समझाते हैं और लोगों को सही मार्ग दिखाते हैं।

निष्कर्ष

पांचवा वेद एक अद्वितीय और महत्वपूर्ण वेद था जो कि परमात्मा के मुख कमल से निकला था। काल भगवान ने इसे इसलिए नष्ट किया क्योंकि इसमें परमात्मा की सच्ची भक्ति का ज्ञान था जो उनके शासन के लिए खतरा था। आज भी तत्त्वदर्शी संत इस ज्ञान को संजोए हुए हैं और लोगों को सही मार्ग दिखा रहे हैं। हमें चाहिए कि हम इस सच्चे ज्ञान को समझें और अपने जीवन में इसका पालन करें।

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