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कप्तान अंशुमन सिंह के माता-पिता के आरोप | कीर्ति चक्र अपने साथ ले लिया

कप्तान अंशुमन सिंह के माता-पिता के आरोप, बहू ने कीर्ति चक्र अपने साथ ले लिया – राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक भव्य समारोह में, भारतीय सेना के वीर जवानों और शहीदों के परिवारों को सम्मानित किया गया. इस कार्यक्रम के दौरान, शहीद कप्तान अंशुमन सिंह के नाम की घोषणा की गई और उनकी पत्नी और माँ ने कीर्ति चक्र पुरस्कार प्राप्त किया. लेकिन अब, अंशुमन के माता-पिता का दावा है कि उनकी बहू स्मृति ने कीर्ति चक्र अपने साथ ले लिया है, जिससे उनके पास बेटे की यादगार के रूप में कुछ भी नहीं बचा है.

शहीद कप्तान अंशुमन सिंह की वीरगाथा

कप्तान अंशुमन सिंह, पंजाब रेजिमेंट की 26वीं बटालियन में मेडिकल ऑफिसर थे. वह ऑपरेशन विजय के दौरान 19 जुलाई 2023 को शहीद हो गए थे. उस दिन, सियाचिन ग्लेशियर पर एक मेडिकल यूनिट में आग लग गई थी. इस घटना में कई जवान फंस गए थे और कप्तान अंशुमन सिंह ने अपनी जान की परवाह किए बिना उन्हें बचाने का प्रयास किया. इस साहसिक कार्य के लिए उन्हें मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया.

कप्तान अंशुमन सिंह का जन्म लखनऊ में हुआ था और उनकी पढ़ाई-लिखाई वहीं हुई. उनके पिता, रिटायर्ड कर्नल रवि प्रताप सिंह, खुद एक सैन्य अधिकारी रह चुके हैं और उन्होंने अंशुमन को हमेशा देश सेवा के प्रति प्रेरित किया. अंशुमन का सपना था कि वह अपने पिता की तरह ही सेना में जाकर देश की सेवा करें.

अंशुमन ने मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के बाद सेना में मेडिकल ऑफिसर के रूप में अपनी सेवाएं दीं. वह अपने सहकर्मियों के बीच बहुत लोकप्रिय थे और उनकी बहादुरी के किस्से अक्सर सुनाए जाते थे. 19 जुलाई 2023 को, जब सियाचिन में आग लगी, तो उन्होंने अपनी जान की परवाह न करते हुए अपने साथी जवानों को बचाने का कार्य किया. इस दौरान वह गंभीर रूप से घायल हो गए और बाद में उनकी मृत्यु हो गई.

स्मृति की कहानी

स्मृति ने एक वीडियो में बताया कि वह और अंशुमन पहली बार इंजीनियरिंग कॉलेज में मिले थे और पहली नजर में ही उन्हें प्यार हो गया. एक महीने बाद, अंशुमन का चयन आर्मी मेडिकल कॉलेज में हो गया और वे अलग-अलग कॉलेजों में पढ़ने लगे. उनकी मुलाकातें कम हो गईं लेकिन उनके बीच का प्यार बना रहा. आठ साल तक वे लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप में रहे और फिर शादी कर ली.

स्मृति ने बताया कि अंशुमन के जाने के बाद से उनका जीवन पूरी तरह बदल गया है. उन्होंने कहा, “अंशुमन मेरे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा थे और उनके बिना मैं खुद को अधूरा महसूस करती हूं. उनका कीर्ति चक्र पुरस्कार मेरे लिए बहुत मायने रखता है क्योंकि यह उनकी बहादुरी और बलिदान का प्रतीक है.”

माता-पिता के आरोप

अंशुमन के माता-पिता, रिटायर्ड कर्नल रवि प्रताप सिंह और मंजू सिंह ने मीडिया से बातचीत में अपनी बहू स्मृति पर गंभीर आरोप लगाए हैं. उनका कहना है कि शादी के केवल पांच महीने बाद ही स्मृति ने अंशुमन की यादगार वस्तुओं को अपने साथ ले लिया और उनसे कोई संपर्क नहीं किया.

रवि प्रताप सिंह ने कहा, “स्मृति ने अंशुमन के कीर्ति चक्र पुरस्कार को अपने साथ ले लिया है और अब हमारे पास हमारे बेटे की यादगार के रूप में कुछ भी नहीं बचा है. वह हमारे साथ कोई संपर्क नहीं रखती और हमारे फोन कॉल्स का जवाब भी नहीं देती.”

मंजू सिंह ने कहा, “स्मृति ने अंशुमन की सभी यादगार वस्तुओं को अपने साथ ले लिया है, जिसमें उनके व्यक्तिगत सामान और पुरस्कार शामिल हैं. हमें ऐसा लगता है कि वह सिर्फ पैसों और संपत्ति के पीछे पड़ी है और हमारे बेटे की यादों का कोई सम्मान नहीं करती.”

एनओके नियम में बदलाव की मांग

रवि प्रताप सिंह ने केंद्र सरकार से एनओके (नेक्स्ट ऑफ किन) नियमों में बदलाव की मांग की है. उन्होंने कहा कि जब सैनिक की शादी हो जाती है, तो उसकी पत्नी को एनओके के रूप में रजिस्टर किया जाता है, जिससे उसकी मृत्यु के बाद सभी लाभ और सहायता पत्नी को मिलती है. लेकिन अगर पत्नी सैनिक के माता-पिता के साथ नहीं रहती है, तो माता-पिता के लिए भी कुछ प्रावधान होने चाहिए.

उन्होंने कहा, “हम चाहते हैं कि सरकार एनओके नियमों में बदलाव करे ताकि शहीद जवानों के माता-पिता को भी उचित सम्मान और सहायता मिल सके. अगर जवान की पत्नी उसके माता-पिता के साथ नहीं रहती है, तो माता-पिता के लिए भी कुछ प्रावधान होने चाहिए.”

सरकारी मदद

रवि प्रताप सिंह ने कहा, “हमारे बेटे की शहादत के बाद, हमें सरकार से 50 लाख रुपये की सहायता राशि मिली थी, जिसमें से 35 लाख रुपये स्मृति को दिए गए. इसके अलावा, आर्मी ग्रुप इंश्योरेंस से भी हमें कुछ राशि मिली, जो स्मृति ने ले ली. लेकिन इसके बाद से हमें कोई अन्य आर्थिक सहायता नहीं मिली है.”

स्मृति का पक्ष

स्मृति ने कहा, “मुझे इन आरोपों के बारे में कोई जानकारी नहीं है और मुझे नहीं पता कि मेरे सास-ससुर ऐसा क्यों कह रहे हैं. मैं अंशुमन की यादों को संजो कर रखना चाहती हूं और उनके परिवार का सम्मान करती हूं.”

स्मृति के माता-पिता ने भी इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं की और कहा कि वे इस विवाद में नहीं पड़ना चाहते.

समाज की प्रतिक्रिया

सोशल मीडिया पर कई लोगों ने स्मृति के प्रति सहानुभूति व्यक्त की और कहा कि वह भी एक शहीद की पत्नी हैं और उन्हें भी सम्मान मिलना चाहिए. वहीं, कुछ लोग अंशुमन के माता-पिता के आरोपों का समर्थन कर रहे हैं और कह रहे हैं कि माता-पिता को भी उचित सम्मान मिलना चाहिए.

भारतीय महिला आयोग ने भी इस मामले में दखल दिया है और कहा है कि ऐसे मामलों में महिलाओं के अधिकारों का भी ध्यान रखा जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि वे इस मामले की जांच कर रहे हैं और जरूरत पड़ने पर उचित कार्रवाई करेंगे.

अंतिम विचार

इस पूरे प्रकरण ने समाज में शहीद जवानों के परिवारों के बीच पैदा होने वाले विवादों को उजागर किया है. एनओके नियमों में बदलाव की मांग ने इस मुद्दे को और भी जटिल

 

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